Saturday, December 29, 2012

माँ मैं जीना चाहती हूँ...


       
" माँ मैं जीना चाहती हूँ "... यह शब्द, आज भी रातों में गूंजते हैं मेरे कानों में ...

दामिनी ...नहीं, "निर्भया" नाम था उसका . २३ साल की एक अनजान लड़की जिसका मुझसे कोई रिश्ता नहीं था. जिसको मैं जानता तक नहीं था. मगर अब उससे पूरा देश जानता है. अपने नाम के अनुरूप ही लड़ने वाली लड़की निकली वो. उसके साथ जो हुआ उसको तो सोचते हुए भी रूह कांपती है. १३ दिन तक मौत से लड़ती रही वो बहादुर और लड़ता रहा देश का हर इंसान उसके लिए . शांति मार्च निकला , पुलिस वालों से जमकर लड़ाई भी हुई , उसके लिए लोग रात रात भर सड़कों पर खड़े होकर उसके ठीक होने की दुआ भी करते रहे. रेडियो पर आंसुओं से रोती उस लड़की की आवाज़ मुझे अच्छी तरह से याद है जो उसके दर्द को सोचते हुए बुरी तरह बिखर सी गयी थी. भावनाओं का बाँध भीगी पलकों का भार नहीं सह पाया और बस रो पड़ी वो लड़की.. कलप कलप कर रोई थी वो . 30 सेकंड तक उसके रोने की आवाज़ आती रही रेडियो पर. इस देश में लोग अपनों के लिए कुछ नहीं करते वहाँ एक अनजान लड़की के लिए इतना कुछ. क्या दिल्ली , कोलकाता, लखनऊ , बैंगलोर, पंजाब.... सब जगह एक ही नज़ारा....सड़कों पर गुस्सा और प्रार्थना उस लड़की के लिए जो कुछ ही समय में एक बेहतरीन डॉक्टर बनती..

वो कहते हैं न कि कभी कभी ज़िन्दगी में ऐसा इंसान आता है जो आपकी ज़िन्दगी को पलट कर रख देता है...ऐसी थी निर्भया...औरों का तो पता नहीं मगर मेरी ज़िन्दगी में तो एक तूफ़ान ला गयी वो, और शायद मेरे दोस्त संतोष की ज़िन्दगी में भी. इन 13 दिनों में क्या कुछ नहीं किया होगा हमनें, एक एक पल की खबर रखते थे उसकी सेहत की, ठीक होने की खबर मिलती थी तो ख़ुशी मिलती थी हमें, बधाईयाँ देते थे एक दूसरे को , खराब होने की अफवाह से ही दिल बैठ जाया करता था हम दोनों का, डॉक्टर्स नहीं हैं हम दोनों ,  मगर पूरी दुनिया से जानकारी इकठ्ठा कर रखी थी की उसके ठीक होने के लिए कौन कौन से ऑपरेशन किये जा सकते हैं.. मिलेजुले भाव थे हमारे...उन दरिंदो के लिए बेइन्तेहा गुस्सा और उसके लिए बस दिल में एक उम्मीद. 13 दिन हमारी सांसें जैसे रुक सी गयी थी. सब परेशान थे. मुझे याद है की हर सुबह उठते ही सबसे पहले उसकी सेहत की खबर भेजते थे एक दूसरे को. दिन भर यह ही हिसाब चलता था हम दोनों का. रात में सोने से पहले उससे याद करके ही नींद आती थी शायद. 

एक दिन संतोष का सुबह 7 बजे ही मेसेज आया की वो कैसी है बता... सुबह 9 बजे उठने वाला बन्दा इतनी जल्दी यह सवाल करे तो अजीब सा लगा. वजह पूछने पर उसने कहा की सपने में उसकी चीखें सुनी तो नींद टूट गयी और जाग गया. आँख खुलते ही उसका ख़याल आया. इतनी बुरी तरह छाई थी निर्भया हम दोनों के ज़हन में. वो जीना चाहती थी और उससे ज्यादा हम चाहते थे की वो जिये. पहले से ज्यादा , दिल खोल कर ......मगर..... यह हो न सका.  उसके जैसी हिम्मत वाली लड़की न मैंने कभी देखी है और शायद न ही कभी आगे भी देखूँगा . आज वो नहीं है... पता नहीं क्या रिश्ता था मेरा उसका कि ऐसा लग रहा है जैसे मैंने अपने किसी को खो दिया है. मेरी आत्मा चुप है, दिल रो रहा है और दिमाग कुछ भी कहने से इनकार कर रहा है. 

शायद यह तीनो कुछ न कहें मगर कुछ कुछ पल बाद भीग जाने वाली मेरे पलकें कुछ न कहते हुए भी बहुत कुछ कह जा रही हैं. तुमने ज़िन्दगी का डट कर सामना दिया, हौसला रखा और एक ऐसी दुनिया में चली गयी जहां भगवान भी तुम्हें हमेशा अपनी गोद में बिठा कर रखेंगे. तुम जीना चाहती थी मगर हम तुम्हारी यह इच्छा पूरी नहीं कर सके. गुनाहगार हैं हम तुम्हारे... अपना तो माफ़ी माँगने तक का हक नहीं बनता तुमसे. अपने घर वालों का घर छोड़ कर गयीं मगर पूरे भारत में हर एक इंसान के दिल में अपने लिए जगह बना गयी. मैं सर ऊँचा करके सलाम करता हूँ तुम्हारे घर वालों को जिन्होंने तुम्हें इतनी अच्छी शिक्षा दी और इस काबिल बनाया. तुम्हारे  परिवार के शब्द तुम्हारे जाने के बाद , " हमें उम्मीद है की हमारी बेटी के जाने के बाद चीज़ें इस देश में महिलाओं के लिए और बेहतर हो जायेंगी ".  क्या कहूं अब मैं निर्भया , और क्या कहूं अब मैं ?? 

बस इतना ही की जिस जगह तुम अब गयी हो , लोग उससे जन्नत कहते हैं....हमेशा खुश रहना वहाँ.... अलविदा निर्भया.... अलविदा... आप तहे दिल से बहुत याद आओगे....बहुत ज्यादा याद..

1 comment:

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