क्यूँ ... क्यूँ मेरा दिल हज़ारों कि भीड़ में तुम्हें ढूँढता है
क्यूँ तुम याद आती हो ..
क्यूँ दिल कहता है कि धड़कन रुक सी गयी है और वक़्त थम गया है
क्यूँ हर रास्ता तुम्हारे बगैर जानकर भी अनजाना लगता है
क्यूँ याद आते हैं वो पल
क्यूँ अश्क तेरा नाम आते ही पलकों का साथ छोड़ देते हैं
क्यूँ अब दिल को प्यार पर यकीन होने के बावजूद भी यकीन नहीं
क्यूँ अल्फाज़ दिल में तेरा ही नाम लेते हैं
क्यूँ दुनिया कहती है मंजिल आगे है, चलता चल और मैं कहता हूँ कि मेरी मंजिल तो कोई और थी और बिना उसके, हर मंजिल बेमानी है
क्यूँ हवाओं को अपने में समेट लेने का मन करता है जब यादें तन्हा छोड़ जाती हैं
मैंने तो सुना था कि रूह का जिस्म से साथ कभी नहीं छूटता...फिर कैसे.. ??
धड़कन मेरी, जवाब देती है सारे.....
कहती है भीड़ में मुझे वही चेहरा सुकून देता है, जब ज़िन्दगी दूर चली जाती है तब वो याद बेइन्तेहा आती है, हर कदम पर साथ चलने का वादा था मेरा, उसके बगैर सारे वादे अधूरे हैं...
आगे कुछ कहते हुए धड़कन भी रो पड़ती है...पता नहीं क्यूँ ??
मैं सोचता हूँ कि कोई किसी से इतना प्यार कैसे कर सकता है ?
दूर कहीं से आवाज़ आती है...वादे तो हर कोई करता है मगर जो अपने किये हर वादे को पल पल जिये उसके लिए....प्यार तो बस वही कर सकता है
क्यूँ एक इंसान हमारी तकदीर बन जाता है ?
क्यूँ हमें उससे बेइन्तेहा प्यार हो जाता है?
क्यूँ हम उसकी याद में पल पल जलते हैं ?
क्यूँ उसके बगैर अनजानी राहों में अकेला चलते हैं, उस ख़ुशी को पीछे छोड़ कर जो उसके साथ थी...उसके लिए थी..
क्यूँ.....
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