वाक्या छोटा सा है...
आज देखा दो अजनबियों को..एक दूसरे की मदद करते हुए. एक 60
साल के अंकल जी और दूसरा एक सिख, उम्र में काफी जवान मगर दो
बैशाखी के सहारे. देखने में साफ़ लगता था की एक दूसरे को नहीं
जानते थे मगर फिर भी जो वो कर रहे थे वो दिल्ली शहर में कम लोग
ही करते हैं- मदद.
वो अंकल उस सिख का बैग पकड़े हुए थे और वो बैसाखियों के सहारे
DTC की लो फ्लोर बस में दोनों बैसाखियों के सहारे अहिस्ता अहिस्ता
चढ़ रहा था. जब वो चढ़ गया तो उन अंकल जी ने उसका बैग उसको
पकड़ा दिया. मैं अपनी जगह पर रुक सब देख रहा था, बस क्यूँ नहीं
चली थी अब तक? मैंने देखा की कंडक्टर ने ड्राईवर को रुकने का
इशारा सा किया. धीरे धीरे उस सिख ने दरवाज़े की तरफ खड़ा हो कर
उनको आवाज़ लगाई और दोनों बैसाखियों के सहारे संतुलन बनाते
हुए उनको सलूट किया..
उन्होंने भी पूरी गरमजोशी से वापस सलूट किया और अपने रास्ते
चल दिए. कंडक्टर ने सब कुछ हो जाने के बाद बस को चलने को कहा..
इतनी देर वो भी दोनों को एक दूसरे का अभिवादन करते देखता रहा
पूरे सब्र से. इतनी देर मैं सब देखता रहा यह सब होते और वह भी उस
शहर में जहां लोगों के पास अपनों के लिए समय नहीं है. वही ऐसा
दृश्य हवा के ताज़े झोंके की तरह है... अद्दभुत..
दिल की कलम से.... वो अजनबी
Reviewed by Shwetabh
on
2:56:00 AM
Rating:
This comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDelete