"कृपया दरवाजों से हट कर खड़े हों "... बीप...बीप...बीप....
और दरवाज़े बंद हों गये.. रोज़ की वही कहानी.. अब तो रट गया है मेट्रो में होने वाला हर अनाउंसमेंट, कब दरवाज़े बंद होंगे, कितने सेकंड में ट्रेन चलेगी वगैरह वगैरह.. अपना तो वही हाल.. मेट्रो पकड़ो, दुनिया के शोर से बचने के लिए कान में इअरफ़ोन लगा लो और लोगों को देखते जाओ.. हर स्टेशन पर चढ़ते उतरते वक़्त अलग अलग तरीके के लोग मिल जाते हैं. दिखे तो थे वो दोनों...मेरे सामने दरवाज़े पर ही खड़े हुए थे.. दोनों अंकल 60 के ऊपर. अपने में मस्त..दोनों हँस रहे थे, बात कर रहे थे. जो लम्बे वाले थे वो दूसरे के कंधे पर हाथ रखे हुए थे, तभी देखा मैंने उन्हें.. कान में सुनने की मशीन लगी हुई थी, देख नहीं सकते थे. मगर उनको इस से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था..वो तो बात कर रहे थे पंजाबी में और दूसरे वैसे ही जवाब भी दे रहे थे.
R K आश्रम पर दोनों उतर गये. लम्बे वाले, दूसरे के कंधे का सहारे लिए हुए , लिफ्ट की तरफ बढ़ चले दोनों. दोनों को देख कर बस यह ही लगा की अगर दोस्त साथ हों तो फिर बस किसी चीज़ की फ़िक्र नहीं. दोस्त और दोस्ती के सहारे इंसान कुछ भी कर सकता है, क्यूंकि दोस्त आपकी खामियों पर कभी ध्यान नहीं देते. उम्र निकल जाती है मगर दोस्त और दोस्ती सब वैसे ही रहते हैं.
इंसान को सारे रिश्ते बने बनाये मिलते हैं, मगर दोस्ती एक ऐसा रिश्ता है जो इंसान खुद बनाता है.. दोस्ती करके देखिये, इसका नशा ज़िन्दगी भर रहेगा..
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