Sunday, October 27, 2013

PACH 9 : घर में महफ़िल और जज़्बातों का समां


आज कहाँ से शुरू करूँ PACH की कहानी ? उस लम्हें से जब चॉकलेट मिली या तब से जब एक परिवार हम पागलों के पागलपन में दिल खोल कर शामिल हुआ , या सौम्या के लिए तैयार हुए सरप्राइज से या उन बहते हुए अश्कों से जो आज 3 मुलाकातों के बाद अचानक से बरस पड़े बस. माना यार Blogger हूँ , लिख सकता हूँ मगर रहूँगा तो इंसान ही न, कब जज्बातों पर काबू न रहे. बहुत ख्वाहिश थी की अपने बाकी दोस्तों को भी इस बार PACH ले जाऊं. पिछली बार इसका ग्रंथ लिखने का मतलब था की सीधे हाथ पर Crepe bandage बाँधने की नौबत आ गयी थी ( जो अभी भी है ). " मुझे इस बार चॉकलेट चाहिए बड़ी वाली , पिछली 2 बार से सब चटकारे ले ले कर पढ़े जा रहे हो, लिखने में हालत खराब हो जाती है. Cadbury Silk". मान गए अनूप इस पर. चॉकलेट तो बनती है तुम्हारे लिखने पर दोस्त. अनूप ने कहा था. इस बार न कहीं बाहर गए और न ही किसी और जगह. इस बार हमारी मेहमान नवाज़ी हुई किसी के घर पे. मनमोहन जी के भैया के घर पर पंजाबी बाग.

मैं : " मैं नहीं आऊँगा , मुझे डर लग रहा है . वहाँ किसी को जानता नहीं "

अनूप : अरे, मेरे इलावा कोई नहीं जानता उन्हें .

तभी बोन्साई ( आविका ) का मेसेज आया की सौम्या दी के लिए हम सब सरप्राइज तैयार कर रहे हैं और आप कुछ लिख कर भेज दो. 

"इसके पास तो नंबर नहीं है, मेरे पीछे जासूस छोड़ रखे हैं क्या ? " 

आविका: नहीं अनूप भैया ने दिया है नंबर.

मैं : कोशिश करता हूँ लिखने की. ( हाथ तो वैसे भी काम से गया था ).

अगले दिन लिख कर मेल कर दी थी. रात में तलरेजा ( अभिषेक) का फ़ोन आया जब PACH के मिलने का status शेयर किया तो. " और इस बार तू काहे नहीं आ जाता अगर फ्री है तो ? "

वो : सोच तो रहा हूँ, पंजाबी बाग में कहाँ जाना है ? 

इस बार अगली सुबह मेट्रो Interchange करने में हालत खराब हो गयी.एक तरफ कीर्ति नगर पर ट्रेन आ गयी तो चलने का नाम नहीं ले रही थी,घड़ी की सुई चल रही थी , तलरेजा पहुँच चुका था और मैं टेंशन में. पंजाबी बाग मेट्रो स्टेशन पहुँचते ही अनूप का फ़ोन आया की कितनी देर है ? सब इंतज़ार कर रहे हैं और मैं सौम्या को लेने जा रहा हूँ. उस वक़्त मेरी हालत फिल्म के उस हीरो की तरह हो गयी जिसकी हीरोइन एअरपोर्ट से फ्लाइट ले कर हमेशा के लिए जा रही हो और मैं रास्ते में जाम में फँसा हुआ हूँ . 15 मिनट में हम शुरू कर देंगे. तलरेजा को फ़ोन लगाया और भागे फिर. घर वहाँ से पास ही था जहाँ ऑटो वाले ने रोका . अन्दर कदम रखा तो नेहा, करन सब बाहर हवा खाने के लिए आ रहे थे. 2 सेकंड की hi hello और हम अन्दर. ऐसा लग रहा था जैसे किसी छोटे बच्चे की बर्थडे है.. इतनी चहल पहल, हा हा ही ही. महफिल में जम गए तब पता लगा की सौम्या के exams से पहले, PACH के इलावा यह "बेस्ट ऑफ़ लक" कहने का मौका था.

File of emotions

बहुत कुछ था इन खुरपेचियों के दिमाग में. वो सारे खतों से बनी एक फाइल, गिफ्ट, पहेली , सब कुछ.. विवेक के साथ मुझे एक पहेली पढ़नी थी, सौम्या को guess करना था की यह इंसान कौन था जिसके बारे में बात हो रही थी. विवेक- वही Kumzum वाले अजनबी. देखा हम लोगों का जादू ? कब अजनबी अपने बन जाते हैं किसी को पता नहीं चलता. अभिषेक को नए दोस्त मिल रहे थे और मैं बाकी के हाल चाल पूछने में मस्त था. नेहा और करन के बीच पता नहीं क्या बातचीत शुरू हुई की कौन कितने बजे उठता है ? नेहा ने कहा की जल्दी सो जाती हूँ और जल्दी उठती हूँ..मैं बड़ी भी तो हूँ उम्र में. करन बोला " हे भगवान, मैं तो 21 में ही अपनी किस्मत को रो रहा था ". बस इतना सुनना था की सबकी हँसी छूट गयी. वो आ रही है- घर वालों ने पहले ही चेता दिया था हम लोगों को और दरवाज़ा बंद कर दिया. सौम्या को भनक जो नहीं लगनी थी. जब दरवाज़ा खुला तो सौम्या 2 सेकंड के लिए अन्दर झाँक कर , थोड़ी भौचक्की हो कर बाहर भागी तो इतना ही सुनाई दिया, " यह तैयारी मुझे करनी थी..."



फिर उसको अन्दर लाया गया और फटाफट शुरू हुआ उसका सरप्राइज सेक्शन. सौम्या की बहुत ख्वाहिश थी PACH की कविताओं और कहानियों की एक किताब लिखने की - PACH TALES.

                         


देखो सौम्या, केक देखो- PACH TALES और अपना ट्रेडमार्क पांडा. बंदी रो गयी और हम लोगों ने भी tissues का पूरा होल्डर उसके पास रख दिया की जितना चाहे रो लो. हमारी पहेली की चिट्स शुरू हुई और उसके surprises खुलते गए- नेकलेस, pach वाली टी शर्ट, पेंटिंग, स्केच और सबसे अलग PACH की तरफ से यादों का लेखा जोखा. उसके आँसुओं और किसी विदा होती दुल्हन के आँसुओं में कोई फर्क नहीं था. और हो भी क्यूँ न- उसकी उम्मीद से ज्यादा जो था यह सब. केक कटवा दिया और तोहफे भी खुलवा दिए.



हम पागलों की चहल पहल में बड़े भी आये - जी बिलकुल, अनूप के मम्मी पापा, मनमोहन जी, उनके बड़े भैया , परिवार के सब लोग और भैया के बचपन के दोस्त भी. सब कविताओं में डूबने आये थे. उनके लिए तो यह बच्चों की मस्ती की महफ़िल थी, और पूरी मस्ती के साथ शरीक हुए वो...वो स्नैक्स. क्या ललचाने वाली चीज़ें थी- टॉफ़ी, चिप्स, च्युइंग गम, चॉकलेट, आइस टी . इस बार के नए लोग अपने लाने वालों का intro दे रहे थे.




मैंने अभिषेक की बावार्चीगिरी सामने रखी तो आँखें दिखाने के बाद भी उसने मेरे बारे में बोल दिया. सुधांशु इस बार कमेंटरी कर रहा था. पहली बार मैंने दिपाली को जल्दी जाते देखा. इसीलिए शुरू हुई duet - प्यार के पकोड़े. फिर खाने की बात. लगता है फ़ूड फेस्टिवल चलवा कर मानेंगे.




तो प्यार के पकोड़े तले गए तकरार के तेल में, शिकायतों के बेसन में लपेट कर, दो प्रेमियों का अपने अपने मसालों के साथ. दिपाली की शिकायत कि बेवजह का भाव दे रही है वो और अनूप बस अपनी ही तरफदारी में.




बड़े भैया के दोस्त आये अपनी कविता के साथ. बिलकुल अलग. इस ज़माने और अपने ज़माने का फर्क दिखा गए. पहले का ख़त और आज का SMS / WHATSAPP. पहले का जाल मछली पकड़ने के लिए और इस ज़माने का जाल (internet) हमें पकड़ने के लिए..वाह जी..ऐसे ही पता नहीं क्या क्या अंतर ढूँढते चले गए. मतलब की हम लव आज कल के सैफ और वो ऋषि कपूर.



कमल PACH को इंसान का रूप दे गया और उससे बातें पूछ ली अपने दिल की. PACH हम पागलों का जमावड़ा ही नहीं, हर एक के लिए कुछ न कुछ है. वो अलग बात है की सब इसे अपनी ज़िन्दगी में कैसे देखते हैं??



बड़े भैया- टीचर हैं, शायद केमिस्ट्री के. काश मेरे टाइम पर मिले होते. एक टीचर अपना पूरा ज्ञान अपने विद्यार्थियों को बाँट देता है, उनके जीवन को कुछ बनाने के लिए. कच्ची मिटटी से घड़ा बनाता है, उनकी कविता में वही निस्वार्थ : भाव दिखा. शिक्षक होता है. अनूप ने फिर राज़ खोल या कहें कि किताब खोली- Larger than life. उनके 50 सालों की ज़िन्दगी को दर्शाती हुई, बेहद खूबसूरत.



एक कविता हम ही लोगों के बीच में से फिर निकली - एक अजन्मी 
लड़की की आवाज़ अपनी माँ के गर्भ से. अपनी ज़िन्दगी की प्रार्थना 
करती हुई की उसे जन्म लेने दो और इस दुनिया में आने दो. जी लेने 
दो उसे भी अपनी ज़िन्दगी, खिलने दो उसे भी, अपने मन की कर लेने 
दो. लड़का नहीं है तो मारो मत. इसके बाद जो हुआ वो मैंने कम ही 
देखा है. लड़कियों ने अपनी ज़िन्दगी बाँटनी शुरू की - कुछ के होने 
पर घर में ख़ुशी थी, कुछ के नहीं. इमोशनल कर दिया सबने. 
संदीप भैया पीछे से बोले- " लड़की ही होनी चाहिए, लड़कों को बड़ा 
करने में extra effort लगता है " और सभी हँस दिए. यानी हम हँस 
भी रहे थे, रो भी रहे थे और चटर पटर निबटाने में भी लगे हुए थे . 
सबकी बात सुनने के बाद अनूप के पापा ने किस्सा सुनाया- अनूप के 
बाद उन्हें एक बेटी चाहिए थी तो उन्होंने एक लड़की को adopt किया 
और अब वो माँ बन्ने वाली है. इतना सुनना भर था की पूरा कमरा 
तालियों और सीटियों से गूँज उठा.

Manmohan ji

मनमोहन जी फिर अपनी एक रोमांटिक कविता पर आ गए. पहले प्यार को दिल में रखना और उसका इज़हार न कर पाना , बस यह ही दिल की कहानी. संदीप भैया शायद भाँप गए तो बोले, " चिंता मत करो, इससे नहीं, मगर की इसने लव मैरिज ही है ". फिर हमने दरवाज़े से अन्दर देखती उन आँखों को देखा "अरे अम्मा, अन्दर आओ तो सही ". भैया बताने लगे की वो कृष्णा को बहुत मानती हैं और जब उन्हें पता लगा की हम इतने सारे बच्चे आयेंगे तो सुबह से ही सारी तैयारियों में लग गयीं. मुझे यहाँ पहला कदम रखते ही लगा था की मैं घर आया हूँ. लंच इंटरवल हो गया. क्या खाएं और क्या छोड़ें? अपना तो वही हाल हो गया की पेट भर गया मगर नीयत नहीं. बड़े प्यार से जो बना था. अन्दर पहुंचे तो नवीन जी अभिषेक के गिटार पर प्यारी सी धुन बजा रहे थे.



अभिषेक जी की बारी आई. जब से यह अपना गिटार ले कर शामिल हुए हैं तब से बिना गिटार सब कुछ अधूरा सा लगता है. ऐसा लगता है जैसे गिटार भी मेहमान से बढ़ कर एक हिस्सा बन गया है. पिछली बार वाला Happiness का पैकेट खुला- क्यूंकि उनको दिल से ख़ुशी थी उसे दोबारा सुनाने की और हम सब तो पहले से ही सुपर फैन थे.

Chocolate oscar

अब मैं फँसा. सौम्या ने मेरा नाम लिया और मैं छूटते ही बोला, " मेरी चॉकलेट कहाँ है ? पहले वो दो तब सुनाऊंगा ". अनूप 2 सेकंड के लिए कंफ्यूज हुए और फिर समझ आया की मैं क्या मांग रहा हूँ. पिछली बार से PACH 7 / PACH 8 लिख रहा था पूरी डिटेल में, कुछ तो चाहिए था न इस बार. मेली चॉकलेट आ गयी..मतलब की मेरी. वो क्या है न की चॉकलेट देख कर मेरे अन्दर का बच्चा बहक जाता है. चॉकलेट लेते वक़्त फोटो खिंचवाई. किसी ऑस्कर से कम थोड़े न था. अले वाह अले वाह..2 -2 डेरी मिल्क सिल्क और 1 ferroro rocher का डब्बा . अब कविता. 

                                

शुरू की मैंने वो चंद पंक्तियाँ जो मैंने ज़िन्दगी में कभी उसकी कमी को महसूस करते हुए लिखी थी. मेरे नाराज़ दिल के मेरे से सवाल जवाब. क्यूँ मैं दिल को अब उसके बगैर जीने को कहता हूँ जिसके बगैर अब ज़िन्दगी, बस ज़िन्दगी नहीं लगती. मैं तो बस पढ़ता गया, न उस दिन जवाब था मेरे पास और न ही आज और न ही होगा. यह सब कहते हैं की जो कविता दिल में उतर जाए उस पर तालियाँ नहीं बजती, ख़ामोशी छा जाती है. 3 कविता, 3 ख़ामोशी. सुधांशु बोला की असर देखना है तो श्रुति को देखो- रो रही थी. सौम्या बोली कि इस पर तो चॉकलेट से ज्यादा कुछ बनता है. अरे दोस्त, उस इंसान को अब पाने के लिए हम सब कुछ कुर्बान कर दें, चॉकलेट क्या चीज़ है. कितना लाचार महसूस किया उस दिन मैंने..उस दिन बस किसी दोस्त के गले लग कर रोना चाहता था.


Talreja

तलरेजा - "संजीव कपूर" बुलाता हूँ इसे. किचन में सन्डे को डिश बनाएगा , पिक्चर डालेगा, टैग भी मारेगा मगर बना कर खिलायेगा नहीं. मुझे तो लगा था की इसकी कविता में टमाटर की भिन्डी से इश्कबाजी चलेगी, बैगन विलन बन कर आएगा. मगर ऐसा तो कुछ भी नहीं हुआ. प्रकृति के करीब ले गया हमें Heaven में. नंगे पाँव घास पर चला और उन छोटी छोटी चीज़ों को महसूस किया जिनको शायद हम सब भूल चुके हैं. अगली में कॉमेडी कर गया. " उन्होंने घूमकर हमको देखा, हम जबड़ा फाड़ कर खड़े थे " और सच में हम भी ऐसे ही हँस रहे थे.


Plate ko dhyaan se dekhein..
इतनी इमोशनल poems के बाद सच में ज़रूरत थी इस डोज़ की. गोविन्द एअरपोर्ट से सीधे आया था थोड़ा लेट. उसके लिए अनूप ने खाना यह कह कर भिजवाया, "वो जो लम्बे बाल वाला है, उसको दीजिये ". भैया के यहाँ भूखे पेट कोई...सोच भी कैसे लिया ? अंकल अपनी जिंदादिली वाली एक और कविता ले कर आ गये. " किसी की राह मैं तकता नहीं ". ज़िन्दगी को अपनी शर्तों पर जीने की ख़ुशी , वो किसी का इंतज़ार नहीं करते.



नबीला - इस बार दिपाली नहीं थी तो वो traditional डांस वाला वेलकम नहीं हुआ उनका. Departed soul से शुरू की अपनी कविता. मगर मुझे जो पसंद आई थी वो थी हिंदी special वाली " यादें "....उस प्यार की जो कभी आपकी ज़िन्दगी हुआ करता था मगर किसी वजह से आपका नहीं हो पाया. थोड़ी सी बेवफाई जो दिल तोड़ गयी बस .



शोभित- इस बार अपने बदले रूप में, न चल दी, न कुछ...बस दिल की बातें इस बार. वो चंद 3-4 लाइन्स जो हम कभी अपने बारे में, कभी दुनिया के बारे में अकेले में लिखते हैं. जज़्बातों की चाट परोस गया भई. दोस्ती, प्यार, अकेलापन और पता नहीं क्या क्या ? हम सब बस ऐसे ही भौचक्के से रह गये की इतने टाइम तक इसका यह रूप कहाँ था? हमें हँसाने वाला बंदा, इतना इमोशनल और संजीदा. कहते हैं न की जो रुला सकता है, वो ही हँसा भी सकता है. " पटना " के एक होटल में एक बुढ्ढे बुढ़िया के बीच खाना खाने की हरकतें , वो भी बस एक जोड़ी दाँतों के साथ वो हँसी ले आई जो चाहिए थी.



हर किसी की ज़िन्दगी में ऐसा वक़्त , ऐसी feelings आती हैं की आप चाहते हैं की उन सबका आपके जीवन से चले जाना ही ज़रूरी है मगर फिर भी लगता है की बस आ कर वो सब आपको जकड़ लें. कुछ कुछ spiderman 3 की तरह. पता है की काला सूट अच्छा नहीं है मगर फिर भी उसको पहने रहने देना चाहते हो. बस यह ही थी करन की Skin deep.



सुधांशु की " लम्बे बाल " - किसी को याद करना, फिर उससे अपनी ज़िन्दगी से हटा कर खुद अपनी ज़िन्दगी जीना. गनीमत है उसने इतना इमोशनल नहीं किया इस बार. मगर इस कविता को एक अलग ही अंदाज़ में लिखा गया था. अच्छा लगा.




गोविन्द- The rider who is a writer. सड़क - सभी चलते हैं उस पर, गाड़ी भी तेज़ भगाते हैं, गड्डा आ जाता है तो गरियाते भी काफी हैं. मगर क्या कभी सड़क की खुद की शिकायतें सुनी हैं की वो क्या कहती है? नहीं न? तो फिर सुनिए सड़क को. छोटी सी थी मगर शिकायत वाले लहजे से ज़्यादा सबको गोविन्द के सुनाने के स्टाइल में मज़ा आ रहा था. वो साउथ इंडियन स्टाइल हम लोगों में से कोई कॉपी नहीं कर सकता. गाड़ी खुद लाते हो सारी, जाम लगा कर कहते हो यार सड़क खराब है. बेवजह का दोष.  




आदित्य - अपनी भतीजी के ऊपर लिखी कविता. बेहद प्यारी. एक छोटी बच्ची को गुब्बारों से मिलती ख़ुशी, फिर उसका हाथ से छूटना और फिर उसके लिए रोना. उसको यह नहीं पता की हम सब के लिए ज़िन्दगी कितनी मुश्किल है. उसके लिए सारा सुख दुःख - गुब्बारे. थोड़ी देर बाद खुद चुप हो जाना और कहना की ये वहीँ अच्छे लगते हैं. इसके बाद मलयालम के ऊपर ग़ज़ल.. मलयालम की खूबसूरती ऐसी जो मैंने आज तक नहीं सुनी. एक लाइन मुझे पसंद आई जो कुछ इस तरह थी की दिन भर अंग्रेजी के साथ बिताने के बाद, रात में मलयालम की खिड़की खोलो तो ज़रा. आम आदमी वाली पिछली बार की ग़ज़ल रिपीट.


Archana and abhishek


अर्चना में PACH के ऊपर अपनी कविता सुनाई. बढ़िया. दिपाली को सबकी याद आ रही थी तो missing you का मेसेज भी भेज दिया. और रोता हुआ चेहरा भी. एक अधूरा गाना ही सही मगर अभिषेक जी का गिटार फिर बजा. " मैं क्यूँ न " की धुन और सब झूम गये. गाना खत्म हुआ और एक छोटी कहानी शुरू हुयी. फुर्सत के पलों में अकेले बैठ कर खुद को एकांत में कवि बन जाने की, हर चीज़ में कुछ न कुछ ढूंढना और फिर सारा ध्यान भंग होना पार्क में उस बेजुबान जानवर की चीखों से जिसे कुछ लोग इसलिए मार रहे थे क्यूंकि आज उनके घर में जशन था . सारी कल्पना छूमंतर हो गयी.   



Rahul

नेहा की पहली हिंदी रचना और राहुल का अगला नंबर. आज सब इमोशनल करने पर तुले हुए थे. राहुल पता नहीं Lord of the rings के ऊपर कौनसी कविता बोल रहा था . हम सब के लिए तो chinese ही थी. न तो मुझे पिक्चर पता थी, न characters . बस सब हँसे जा रहे थे और वो झुन्झुला रहा था. थोड़ी बहुत चिल्लम चिल्ली के बाद अपने ऊपर कंट्रोल रख कर हमने सुना और खत्म होते ही फिर ठहाके लग गये. उसके बाद वाली surprise थी. सौम्या के इंतज़ार में लिखी थी उसने एक कविता. कोई 5 -10 मिनट के लिए बाहर गयी थी वो और उतनी ही देर में ही इतनी गज़ब लाइन्स लिख दी थी की एक अलग ही समा बन भी गया, बांध भी गया और बदल भी गया. The best things for the last कहा जाता है. पिछली कविताओं का पिटारा जब खुला ही था तो रूद्र की आई - Death . क्लास 7th में लिखी थी कभी. सुनने के बाद मुझे सच में यकीन नहीं हुआ की यह इतनी पहले लिखी गयी होगी कभी. हर बात को गहराई से उतार दिया था दिल में.

Time Specialist

अभिषेक - अपने वही Timing specialist. पिछली बार 9 बजे से पहले इंतज़ार करवाया तो इस बार " Life before 5.30 ". एक औरत के दिल की कहानी जिसको घर का सारा काम करना है सुबह 5.30 से पहले. पति के ऑफिस जाने की तैयारी, बच्चे का स्कूल टिफ़िन तैयार करना और साथ ही साथ याद करना अपना प्यार. एक ढर्रे पर ज़िन्दगी चला रही है वो, अपने दिल को मार कर. जज़्बात, प्यार सब रूटीन हो गये हैं, दिल से नहीं आते. वो ज़िन्दगी जी नहीं, काट रही है इतना मुझे लग गया था. क्या यार अभिषेक जी? आप भी लग जाओ रुलाने में.
   

नवीन जी- एक दम शांत टाइप्स. चुपके से सब सुनते हैं और जब मदद करते हैं तब कोई बराबर नहीं इनके. सौम्या को किसी किताब की ज़रूरत थी अपने इम्तिहान के लिए जो बहुत पहले छपी थी तो उन्होंने सब जगह ढूँढ मचा दी और जब तब भी काम नहीं बना तो लेखक की ही कॉपी मँगा दी उनके बेटे से बात करके. इनके भाव " यह कोई ख़ास नहीं ". एक प्रेमी अपनी प्रेमिका को बताते हुए की प्यार मैं तुमसे करता रहूँगा और अगर कोई मेरे बारे में तुमसे पूछे तो बस कह देना यह कोई ख़ास नहीं. अपने प्यार की ख़ुशी के लिए खुद से दिल को चोट पहुँचाना. भूल जाना चाहिए उसे मुझको. पहली कविता हम सबको जहां बहा कर ले गयी थी उसी से आगे ले गयी लहरें " यादों "की. सब बह गये. होश तो तब आया जब चाय कॉफ़ी की गिनती हुयी.


श्रुति - आभार और धन्यवाद का तोहफा दे गयी. ये दोनों शब्द ज़िन्दगी में इस्तेमाल होने वाले, मौकों पर, मगर इनका सही मतलब और प्रभाव बहुत ही कम लोग जानते हैं. यह हर किसी को मिलता है मगर हर कोई इसका सही इस्तेमाल करना नहीं जानता.



सौम्या की twin - नेहा . अब तो एक्सपर्ट हो गयी है हिंदी poems में. जीना सीखने का मन है. मन है प्यार करने का, गुस्सा होने का, रूठने का, शिकायत करने का, मनाने का, मान जाने का. सब कुछ. ज़िन्दगी एक अलग तरह से जीने का मन है. सीखोगे ??

Anurag, shobhit, saumya

अनुराग की 2 कविता मगर भाव एक ही - यादें. इंग्लिश वाली थी Smudging memories. वक़्त के कैनवास पर यादों की अब कुछ साफ़ सी, कुछ धुंधली सी तस्वीर जो ज़ेहन में अभी भी है. फिर इसके बाद आई - " काश ". क्या भूल सकता है यादें कोई? काश थोड़ी दूर तक और साथ चले आते अपनी यादों के साथ. वो यादें किसी अपने की, बचपन की जब अपनी नर्सरी ryhme पापा के पसंदीदा कैसेट पर रिकॉर्ड की मगर तब भी माँ ने कहा, " ऐसे भी अच्छा ही है ". एक Mortar राउंड 50 मीटर के दायरे में ज़बरदस्त तबाही मचाता है और मुझे ऐसा लगा की एक गोला हमारे बीच फटा जब मैंने अनुराग से कविता में गिनती पूछ कर गलती कर दी. उसकी कविता में ज़िक्र था - पहले 4 लोगों का, अब 3 का - वो , उसका भई, और पापा. चौथा? बताने की ज़रूरत नहीं थी. " भाई आपने पुराने रग छेड़ दी " कह कर करन ने अपने परिवार में किसी की याद में लिखा पढ़ दिया. 2 लाइन बाद ही उसका गला और आँखें जवाब दे गयी , सौम्या ने भी पूरा करने की कोशिश की तो बस हम 3 उस अनदेखे धमाके का शिकार हुए थे - करन, अनुराग और मैं. याद आया मुझे कोई अपना.



विवेक भी यादों में ही ले गये. शराब के साथ में सब कुछ भूलने की कोशिश , जो लगती तो आसान है मगर होती नहीं. माँ से कैसे कहूँ की किसी गम में पी रहा हूँ तो आपकी कॉल नहीं उठाऊँगा. अपनी ज़िन्दगी को कैसे समझाऊं की क्यूँ नहीं छूट जाता यह जाम मुझसे. शराब में तुझे दूर होते देखता हूँ और फिर तू ज़िन्दगी से ही दूर चली जाती है.



बोन्साई का धमाका जारी था. आविका इस बार लालच पर आ गयी. कुछ लालच प्यार का, कुछ नाराज़गी का , कुछ मनाने का, कुछ नखरों का और कुछ थोड़ा सा इतराने का. यह ऐसे ही धमाके करती ही रहेगी. 



अनूप- एक ख़त अपनी होने वाली पत्नी के नाम. अब यह नहीं पता की किसी और की या... सब कुछ ही तो लिख दिया था उसमें. कैसे हैं, क्या अच्छाई है, क्या चाहते हैं उसमें , कितने प्यार की उम्मीद रखते हैं जो हर लड़का चाहता है. ख़त में दिल सी सारी बातें रख दी सामने. खत्म हुई यह महफ़िल सौम्या की एक कहानी के साथ और आखिर में हँसाने के लिए अशोक चक्रधर की रचना " हँसो या मर जाओ " के साथ जो मागो ने सुनाई. 
कोशिश थी 5 घंटे की महफ़िल जमाने की मगर ऐसे माहौल में 7 .30 तो कब के पार हो गये थे. बड़े भैया को दिल से धन्यवाद करके मैं और तलरेजा जब बाहर निकले तो उसके यह शब्द थे, " अब जिस जिस सन्डे को मैं फ्री होऊँगा और PACH होगा तो मैं आऊँगा ज़रूर." इतना इमोशनली ओवरलोडेड कर दिया था इन लोगों ने की 2 मेट्रो स्टेशन की दूरी में ही मैंने यह चंद अल्फाज़ लिखे -

कटोरी में टॉफ़ी रंग बिरंगी,

हाथ में कविता,

चेहरों पर मुस्कान,

आँखों में आँसू ,

यारों मैं एक घर हो कर आया,

इतने बड़े बच्चों को पा कर वो घर वाले भी खुश हुए ,

हम बच्चों के बीच वो भी बच्चे बन गये,

वो 8 घंटों की खुशियाँ बिखेर के आये हम,

यारों मैं एक घर हो कर आया.

यारों मैं आज फिर PACH की महफ़िल में हो कर आया.

मैं आज फिर अपने दामन में खुशियाँ बटोर कर आया,

मैं आज फिर ज़िन्दगी का एक लम्हा जी के आया.



हाथ तो पहले से ही दर्द था, दिमाग का अलग तंदूर बना दिया था 

सबने इमोशनल कर कर के. 

आगे जाने राम क्या होगा???

PACH 10 होगा न ...


1 comment:

  1. Shwetabh ab tumhare blog ki adat lag gai h..by god awesome..the reference to the spiderman movie was very unique n precise too. Is bari mai individually aya..yo babby! n last me meri painting dal k to bus safal bna diya mujhe.

    Dhnyawad dost. Abbhinn ang ho PACH ke ap.

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