Monday, December 9, 2013

दिल की कलम से.. विश्वास और भरोसा उस ज़माने का



आज के ज़माने में एक चीज़ नहीं मिलेगी किसी को और वो है भरोसा.. आज जो वाक्या मैं आपके साथ बाँटने जा रहा हूँ जो आज के वक़्त में हैरान करेगा मगर उस वक़्त के लिए एक दम सही थी. यह बात तब कि है जब मैं पैदा भी नहीं हुआ था. यह बात का वास्ता है मेरे पापा से. घटना छोटी सी है मगर दिल छू जाती है. शायद बात है 1977 या उसके आस पास की है जब पापा अपनी नौकरी ज्वाइन करने जा रहे, शायद अलीगढ़.. उस वक़्त तो कोई किसी को जानते भी नहीं था इतना. उनके पास एक दोस्त का पता था जिनके पास उनको रुकना था. ट्रेन से आ रहे थे. शायद वो ट्रेन रात में काफी देर से अलीगढ़ पहुँचती थी. उस वक़्त उतना साधन भी नहीं हुआ करते थे रात में. तो ट्रेन में ही बातचीत शुरू हुई पापा की एक दूसरे इंसान से. बातों बातों में ही उन्होंने पूछा की पापा को कहाँ जाना था और बाकी कुछ.. सुनते ही उन्होंने पापा से कहा , " अरे इतनी रात आप कहाँ अपने दोस्त का घर ढूँढेंगे ?? मेरे साथ मेरे घर चलिए, रात को रुकिए और फिर आप सुबह अपने दोस्त के यहाँ चले जाइयेगा. " 

विश्वास करके पापा ने बात मान ली और चल दिए. उन अजनबी अंकल के घर पापा का स्वागत हुआ. रात भर रुके और सुबह अपने दोस्त के यहाँ चल दिए , उन अंकल की मम्मी ने और रुकने को कहा भी. वो दिन के बाद एक गहरी दोस्ती हो गयी पापा की उनके साथ. जब भी अलीगढ़ जाते थे तो उनके यहाँ ज़रूर रुकते थे. है न हैरान करने वाली बात? आज के वक़्त में लोग अपनों पर विश्वास नहीं करते और उस वक़्त सिर्फ एक विश्वास ही था जिस पर भरोसा करके पापा चल दिए. और देखो... एक बेहद प्यार सम्मान करने वाला परिवार मिला किस्मत से जिसने रात में आये एक अजनबी का बेहद प्यार से स्वागत किया. कुछ वाक्ये सच में अचंभित कर देते हैं.. सोचता हूँ की यह विश्वास और भरोसे से जन्मा दोस्ती का रिश्ता था उस ज़माने का. लोग सच ही कहते हैं की गुज़रे ज़माने में कुछ तो बात थी. 

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