यह कैसी मोड़ पर हूँ मैं ?
जहाँ कहने को सब साथ हैं मगर फिर भी बहुत अकेला
वो अकेलापन जो किसी से कह नहीं सकता क्यूंकि कोई सुनने वाला नहीं है
वो अजीब सी कश्मकश जो सिर्फ कलम और कागज़ के बीच लिख लिख कर पूरी हो रही है
वो लफ्ज़ जो बयान होने से पहले ही भीगी पलकों से टपक पड़ते हैं
अंदर ही अंदर घुटते रहने का एहसास
दुनिया के सामने बेवजह हॅसने और झूठी मुस्कराहट का दिखावा करना जबकि हंसी और ख़ुशी तो मेरे से कोसो दूर हैं
यह कैसी मोड़ पर हूँ मैं ?
यहाँ दोस्त , यार सब धीरे धीरे पराये होते जा रहे हैं
और मैं एक अनदेखे भँवर में फंसता जा रहा हूँ
बहुत सारे अनसुलझे सवाल जिनका जवाब मेरे पास नहीं है
हर बार टूटता नहीं, बिखर जाता हूँ
और बिखरी हुई ज़िन्दगी अब फिर से समेटी नहीं जाती
हर रोज़ यह ही लगता है अब बस बहुत हुआ..अब नहीं हो सकता
यह कैसी मोड़ पर हूँ मैं ?
शायद उस पर जहां से वापसी के रास्ते नहीं होते ...
यह कैसी मोड़ पर हूँ मैं ?
यह कैसी मोड़ पर हूँ मैं ?
Reviewed by Shwetabh
on
5:48:00 PM
Rating:
nice line shwetab, very well expressed and yes sabki yahi kahani hai bhai :(
ReplyDeleteshayad chalti ka naam gadi aur yahi se ye saali zindagi :/ B)
Shwetabh.... this is something that everyone faces in today's world... but not everyone can express the feeling.... very well elaborated
ReplyDeleteBeautiful.
ReplyDelete