Tuesday, December 3, 2013

PACH 12 : वो कचौड़ियाँ , खीर और वो बेइंतेहा प्यार



अबे 10 मिनट पहले चिड़िया ले गयी, 10 मिनट अब यह गिलहरी और कबूतर. समझ नहीं आ रहा है कि मैं PACH में आया हूँ या यह सब देखने? ( मन में : वैसे बहुत प्यारे हैं तीनो ). नाम की ठण्ड और भयंकर तेज़ धूप में पसीने पसीने हो निकल पड़े एक घर की ओर इस बार GK 1 में नेहा के घर. टाइम तो एक बजे का था मगर हम सब टाइम से कार्यक्रम शुरू कर दें तो फिर हम सब `हम` कहाँ रहेंगे? मकान नंबर ढूँढ़ते ढूँढ़ते परेशानी तो नहीं हुई मगर जब सोचता हूँ की कैलाश कॉलोनी मेट्रो स्टेशन से पैदल पैदल तफरी में यहाँ तक आ गया तो हँसी ज़रूर आ जाती है. वैसे पैदल आने से रास्ते जल्दी याद होते हैं. नेहा के घर से पहले एक घर में पिंजरे में बहुत प्यारी हरे पीले रंग की 4 चिड़िया नज़र आयी तो उनकी आवाज़ सुन कर 10 मिनट वहीँ रुक गया. ध्यान तब टूटा जब एक गाड़ी का हॉर्न सुना. आगे बढ़े तो एक कबूतर और दो गिलहरी ने ध्यान खींच लिया. यानी 20 मिनट ऐसे ही गए.


My 10 mins. of watching these three

मकान एक , गेट दो . एक बड़ा , एक छोटा. सोच ही रहा था की कहाँ से एंट्री लें की शोभित आता नज़र आया. 5 मिनट तक दिमाग खपाने के बाद नेहा को फ़ोन घुमा कर घर में एंट्री ली. लोग कहते हैं घर दीवारों और छत से नहीं, उसमें रहने वालों से बड़ा होता है और भई इतना बड़ा " घर " मैं आज देख रहा था. घर से भी बड़ा दिल - नेहा का, और उससे भी ज्यादा अंकल आंटी का. कदम रखने के 5 सेकंड बाद से ही जो प्यार मिलना शुरू हुआ तो फिर इतना मिला की जेबें, झोली, दिल, हाथ सब भर गए और इतना की संभाले नहीं संभल रहा था. और वैसे भी हम PACH वाले सब flexible साइज़ के साथ आते हैं , कहीं भी एडजस्ट हो जाते हैं. लेट लतीफी का आलम कहें या आंटी का प्यार/ मेहमान नवाज़ी या उन स्वादिष्ट कचौरियों का स्वाद कि इस बार रिकॉर्ड तोड़ लेट हुए.. 3 बजे शुरू हुआ सब.


इस बार नया दोस्त था हमारे साथ.. मयंक. बंदा बहुत स्पेशल है यार..बहुत. अपनी मन की आँखों से देखता है सब कुछ. हिचकिचाहट थी उसमें मगर हम लोग हैं ही ऐसे , अजनबियों को दोस्त बना लेते हैं. शुरुआत उससे ही करने का मन था मगर उससे वक़्त चाहिए था सोचने का तो फिर हमने मौका दिया मेघा को.


मेघा - It happens only in India. प्यार पर. एक भारतीय लड़की के प्यार की दास्ताँ. अपने प्यार को छोड़ कर घर वालों के चुने हुए लड़के से 
शादी कर लेना. The perfect daughter का तमगा ले कर अपने दिल के हज़ारों टुकड़े कर देना. अब उसका एक बेटा भी है, परिवार की देखभाल भी कर रही है मगर मुझे शक़ हुआ की क्या कभी वो अपना प्यार भूल पायेगी? इसका जवाब शायद कभी न मिले.

Anoop and Mayank

मयंक - कविता याद नहीं आयी तो क्या हुआ यार ? गाना तो है ही न ? और हम सब हैं न साथ देने के लिए? गाना गाया उसने " Melody in my heart " और सब साथ भी दे रहे थे . गाने से ज्यादा melody गाने वाले के गले में थी.

The couple

शादी के बाद पहला PACH - योगेश और प्रतिभा का. " प्रतिभा दी साड़ी में "...यह लाइन बहुत सुनी. इंट्रो करवाया तो ऐसा लग रहा था जैसे योगेश जी को सब कुछ रटवा कर लाया गया है, एक भी गड़बड़ हुई तो प्रतिभा जी की एक कोहनी..खैर, ऐसा कुछ नहीं है. वो वैसे भी कम बोलते हैं. इनकी कविता प्रतिभा जी के लिए. प्यार के जज़्बात वो नई ज़िन्दगी में अपने हमसफ़र के साथ जिसका साथ पा कर ऐसा लगता है जैसे इश्क़ पूरा हो गया मगर ज़िन्दगी का सफ़र अभी तो अधूरा है. सब कुछ इतना रोमांटिक जा रहा था की गोविन्द ने भाँजी मार दी. मेरे से कहता है, " दो साल बाद पूछेंगे प्यार ". K for कविता , K for कविता का कबाड़ा...हम सब कर देते हैं.. PHD हासिल है यार.

The new bride

प्रतिभा- पति की बारी हो गयी, अब पत्नी की बारी. रिक्वेस्ट करने पर यह सुनने को मिला, " खाने तो दो यार". सही बात है, एक हाथ में कचौरी, एक में चाय और बोलो कविता की फरमाइश हो रही है. मज़ाक है क्या आंटी की बनाई इतनी बढ़िया चीज़ को छोड़ना ? प्रतिभा जी का जवाब कुछ सपनों जैसा ही था. इतना खूबसूरत " मेरे सपनों में कभी नहीं मिलते थे "..वक़्त थम जाता है, इंतज़ार है की बस खत्म होने का नाम ही नहीं लेता है. 7 दिन हो गए - रोज़ ऐसे ही गिनना उन खूबसूरत पलों को जो इस नई ज़िन्दगी में गुज़रे हैं बस. मैं तो अभी इस रिश्ते से दूर ही हूँ मगर जितना भी समझ आया बेहद प्यारा लगा.

कविताओं के साथ नौटंकियाँ तो होंगी ही- फिर चाहे वो कविता के बीच में पकर पकर , हा हा , गोविन्द की आँखों में संतरे का छिलका निचोड़ दो. प्रतिभा जी की कविता के बाद दिपाली की लाइन शुरू, " यार मुझे भी शादी करने का मन कर रहा है ". तभी कमल आया और उसके पीछे हरी जैकेट में एक सुन्दर लड़की ने आ कर हाथ जोड़ कर नमस्ते किया हम सब को. दिपाली के मुँह से निकला , " अरे यह कमल की दुल्हन कौन है ? ". एक सेकंड तो सच में लगा की इसकी शादी हो गयी मगर बाद में पता लगा की यह इसकी बहन ऋतु है, दूसरी थी मुस्कान . सबसे छोटी होने का मानसी का खिताब छिन गया.
 
Navin ji
   
   
नवीन जी - इनके बगैर PACH पूरा नहीं होता, कभी भी. इनके जज़्बात मिले " मैं कौन हूँ " में. गले में अटकी हिचकी या सुट्टा . Whatsapp के ढ़ेर सारे messages को मिला कर बना था यह ख्याल. अलग अलग बातों का ताना बाना. आविका का जवाब भी था इसमें की मैं दिल में आया हुआ ख्याल हूँ.

                          


दिपाली - आज फुल फॉर्म में थी. ऐसा लग रहा था जैसे कच्चा खा जायेगी. कुछ Expressions तो देखने वाले थे. आंटी ने बीच में कहा भी था, " तू तो हाथ में बेलन कर कर घूम रही है ". 

ज़ुबान - सब कुछ कह जाती है ख़ामोशी से. फिर चाहे वो अँधेरे में लाल रातों की ज़ुबा हो, मस्जिद में बंधे धाँगों की ज़ुबा हो या मंदिर में घंटियों की ज़ुबा. हर चीज़ की अपनी एक ज़ुबा होती है ख़ामोशी वाली, बस सुनने वाले को ध्यान लगाना है. ज़रूरी नहीं की उस ज़ुबा में शब्दों का इस्तेमाल हो. चुप रह कर भी बहुत कुछ कहा जा सकता है.



शोभित - मेंन इवेंट से पहले पटाखे ज़रूर फोड़ता है और इसके यह पटाखे होते है इसके शेर. 2 - 3 धमाके किये उसने और फिर आया " दुल्हन " पर. शादी से ठीक पहले एक दुल्हन की दिल की हालत, उसकी घबराहट, उसके मन के जज़्बात. कह तो यह ही रहा था पहली बार कोशिश की है एक लड़की के दिल की बात कहने की और पहली बार ही में कामयाब हो गया.



अभिषेक - टाइमिंग स्पेशलिस्ट इस बार हिंदी में ले कर आये थे " स्टेनलेस स्टील का टिफ़िन ". The Lunchbox से inspired थे क्या ?? तो एक स्टेनलेस स्टील का टिफ़िन आया जो खोल तो रही थी वो मगर खुल नहीं रहा था, या खुलना नहीं चाहता था पता नहीं. कस कर बंद हुए ढ़क्कन बस तब ही खुलना चाहता था जब उस कोमल कलाई को हाथ पकड़े बहाने से, डब्बा खुला, आँखों में ही बात हुई...खोया खोया रह कर खोये की मिठाई निबट गयी. प्यार में खोये की मिठाई ? हे राम... Cadbury वाले सुनेंगे तो अपनी फैक्ट्री बंद कर देंगे.



अमृत - कहीं तुम वो तो नहीं. यह लाइन सुनते ही मुझे गाना याद आया " ज़रा सी आहट होती है तो दिल सोचता है, कहीं यह वो तो नहीं " हमने तो सोचा भाई की तू किसी की याद में लिख रहा था. यह किसी पता था की तू दोस्त की गर्लफ्रेंड का दीवाना हो गया था. कोई नहीं, कोई नहीं...खूबसूरत लड़कियाँ और इश्क़ कुछ भी करा लेते हैं. दिल में पहचान ढूँढ़ती , बनाती लाइन्स. शंकर महादेवन का breathless गाना तो सुना ही होगा ? अब कविता में सुनिये एक breathless . पूरी तरह से विशेषणों ( adjectives ) से बनी हुई. इसकी खासियत ? सुनने पर ही पता चलेंगी. लिख भी दूँ तो वैसे समझ नहीं आएगा.



नेहा- Blinding . चकाचौंध से भरा प्यार. बाँहों में पूरा होता हुआ. बस और किसी चीज़ की तमन्ना नहीं है अब. शायद है.... स्ट्रॉबेरी की और शायद चॉकलेट की भी . यह तीन चीज़ें मिल जाएँ तो और कुछ नहीं चाहिए. इसी चकाचौंध से काम और प्यार दोनों ही चल जायेंगे.



घर वाले - इनके बगैर यह हिसाब पूरा नहीं होगा. अंकल अपनी सर्जरी से रिकवरी कर रहे थे मगर तब भी वक़्त निकाल कर ख़ास तौर पर योगेश और प्रतिभा के लिए चंद लाइन्स कही.



आंटी को देख कर ऐसा लगा जैसे हमें हमारी ही उम्र की दोस्त मिली. खाना और खातिरदारी, दोनों में ही कोई जवाब नहीं. फिर चाहे वो हो या उनके घर में काम करने वाली सुनीता जो हम लोगों को देख कर बेहद खुश थी . हम लोगों का मुँह तो देखने लायक था जब यह घोषणा हुई की खाना भी पूरा बना है, खाना भी है और ले भी जाना है. 



एक ग्रुप फ़ोटो के साथ , योगेश प्रतिभा को विदा करते हुए जो उपहार हमने अंकल आंटी को दिया तो बस 2 way barter हो गया. उनकी आँखों में ख़ुशी और प्यार दिखा तो हम भी नदीदे थे, कहाँ कुछ छोड़ने वाले थे ? हर पिक्चर में एक ब्रेक होता है, इसमें भी था.

Kheer...kheer...kheer

जब मेज़ पर लगा खाना हमें पुकार रहा था तो मैंने विवेक से कहा , " भाई हम इंतज़ार किस बात का कर रहे हैं? ". विवेक ने कहा, " आगे बढ़ कर प्लेट उठाओ ". और फिर तो आय हाय पूरियाँ , सब्ज़ी, चटनी, मिर्च की ऐसी बरसात हुई की क्या बताएं. खीर..... क्या आंटी पहले बताया होता तो इस स्वीट डिश के चक्कर में मेन कोर्स पर निगाह रखते. चाय का राउंड भी तो कितनी बार चला. माँ भी खिलाये जा रहीं थी और हम भी डटे हुए थे.

बेटा, चाय कौन कौन पियेगा हाथ खड़े करो ??...

(गिनते हुए )- 1 , 2 , 3, 4, 5, 6, 7........ (मुस्कुराते हुए) - सुनीता एक काम कर, सबके लिए ही बना दे..गिनने का कोई फायदा नहीं है.

Anoop ki chikni chameli


खाने के बाद ठीक बाद शोभित ने show piece वाली छोटी ढ़ोलक उठा ली और बजाना शुरू हुआ. एकांक्षा, दिपाली , श्रुति और बाकी सब ने गाने शुरू किये. थोड़ा बहुत नाचना भी हुए लेकिन एकांक्षा के साथ जो अनूप ने मटकायी कमर " चिकनी चमेली " पर तो भई सीटियाँ बज गयीं. क्या क़ातिल अदा थी दोनों की... कंटास.. आंटी तो फ़ैन हो गयीं अनूप की. दोबारा कहने पर भी नहीं नाचा. लेडीज बार में नौकरी पक्की अनूप की.



एकांक्षा - 3 कविताएं अपनी माँ के लिए, उनकी याद में. `Epitome on mother` , शून्यता में विलीन और Remember me. दोस्त आप भले ही पढ़ते वक़्त मुस्कुराने की कोशिश कर रहे थे मगर आपकी भीगी पलकों को बहुतों ने देखा था. आप मुस्कुराते हुए ज्यादा अच्छे लगते हो. सदा मुस्कुराते रहो. Translation भी हुआ था एक उर्दू की कविता का. गोविन्द ने किया था. अब क्या किया यह मत पूछना, मेरी हँसी छूट जायेगी. प्यार के ऊपर उर्दू में लिखी कविता तो ठीक थी, मामला ट्रांसलेशन पर पटरी से उतर गया.



कमल - " अरे भाई अब तो करो कुछ ". टाइटल पिछली बार जैसा ही मगर चक्रधर जी के मुताबिक़ काम करते हुए इस बार एक समस्या पर लिखी- चुनाव में वोट न करने की और बाद में दोष देने की. वक़्त आ गया है कुछ करने का, वोट करने का. तो भाई अब तो कुछ करो, वोट करो



आक़िब - बहुत वक़्त बाद आया था यह. अब क्या कहूँ कि क्या ज्यादा अच्छा है? इसकी फोटोग्राफी , इसकी किताब, इसकी कविता और जो यह कहानियाँ लिखता है ? प्यार के ऊपर लिखा मगर उलटे फ्लो में, मतलब कि सबसे पहले अंत, फिर एक कदम पीछे, फिर एक पीछे, उल्टा फ्लो हम जिसे कहते हैं. कविता तो पसंद आयी ही मगर यह नया स्टाइल भी पसंद आया. बेहद खूबसूरत यार. अमृत ने कटाक्ष करते हुई " कुर्सी " पड़ी और उसके बाद नंबर आया गोविन्द का.



गोविन्द - चुनावी हवा चल रही थी शायद तभी इसने भी पढ़ी " ऊँगली ". दिखाने वाली नहीं मगर इस बार दबाने वाली- वोट पर. फिर इंग्लिश में लड़कियों के ऊपर लिखी - " G for girls, G for govind ". लड़कियों के बारे में यह कहती कि वो क्यूँ ख़ास हैं और क्यूँ उनकी दिल से इज्ज़त की जाती है. बस एक लाइन थी, " Girls are the most beautiful thing " और Thing शब्द सुन कर दिपाली मार डालने वाले Expression दे रही थी.



मानसी - The smiling pendulum. यह कविता का नहीं, यह नाम मैंने इसको दिया है. दिल खोल कर हँसती है और pendulum की तरह हिलती डुलती रहती है. सीधे नहीं बैठ सकती. एक मिनट टिकने का चैलेंज दिया था, 3.5 सेकंड तक ही चला बस. " Rapist " - एक बलात्कारी की मनोदशा में झाँकने का प्रयास. जब वो यह सोचता है की वो जो कर रहा है वो क्यूँ कर रहा है, कैसा महसूस होता है एक लड़की पर ज़ोर आज़माते हुए? क्यूँ लोग अजीब धिक्कारने वाली नज़रों से देखते हैं और पुलिस ऐसे सवाल पूछती है ?

Anurag

अनुराग - Frank Einstein - सोच के साँचें में ढाल चुकने की कहानी जिससे बाहर निकलना मुश्किल है . Fairy tales वाला Frank Einstein जिसे लोग एक दानव समझते हैं मगर वो तो बस प्यार करना चाहता है. अब ज़रा हँस लिया जाए - एक इंसान जो मर रहा है उसकी व्यथा, अब ज़रा हँस लिया जाए. ज़िन्दगी में बहुत दुःख, बहुत परेशानियाँ देख ली जब तक ज़िंदा थे, अब ज़रा हँस लिया जाए.

अरे पगले रुलाएगा क्या ? - गुदगुदाने वाली कविता जो बयान करती है एक दिन दो दोस्तों के बीच में हँसते हुए, खाते हुए, मस्ती करते हुए और लड़कियाँ ताड़ते हुए.



वैभव - एक Illustration बनाई थी इसने. एक ragpicker की. बस उसी नाम से टाइटल भी कर दी कविता. रागपिकेर जो कन्धों पर बोरा डाल कर छोटा मोटा सामान बीनता रहता है और बस अपनी ज़िन्दगी काट देता है.


आज चौंकाने का मन था मेरा. बस इतना ही कहा था मैंने की प्यार मोहब्बत पर नहीं लिखा है. 2 - 3 को छोड़कर किसी को भी नहीं पता था की क्या सुनेंगे सब? अनूप को विश्वास ही नहीं हो रहा था, " नहीं...नहीं हो सकता का टेप चल रहा था". Reinforcement - युद्ध में गोला बारी के बीच में, मदद के आने का इंतज़ार जो जान बचा सकती है. घायल होते साथ, खत्म होती गोलियों और सामने आती मौत के बीच वो मदद.आज जैसे मेरी जान बच रही है, वैसे ही मुझे भी बचाने जाना होगा कभी. अनूप का चेहरा देखने वाला था. " भाई साहबब्ब्ब ...कब लिखी तूने यह ??" सुनते ही समझ आ गया था की सबकी उम्मीद से अलग था मैं आज. 

The Walk back home - POW ( युद्बन्दियों ) के दर्द को महसूस करते हुए लिखा था मैंने. वो इंतज़ार घर जाने का, वो इंतज़ार अपने घर वालों से मिलने का. इसके बाद तो सबकी बोलती ही बंद हो गयी थी. सन्नाटा देख कर मुझे लगा किसी की समझ नहीं आयी तो मैं तीसरी की तरफ बढ़ा मगर जब अनूप और दिपाली चिल्लाये तब समझ आया कि दूसरा बम भी फोड़ दिया मैंने. तीसरी नहीं सुनाई मैंने क्यूंकि मयंक को देर हो रही थी. शायद उसकी ( तीसरी ) किस्मत मागो के सामने सुनाने कि ही लिखी है. अब आगे का काम थोड़ा फटाफट हुआ मयंक के लिए. अनूप दिल्ली के ऊपर एक लयदार कविता सुना गया एक गाने कि तरह. दिपाली " Impatient Fingers " के साथ माहौल रूमानी कर गयी, प्यार की जो हवा चली थोड़ी नटखट अदाओं के साथ.



श्रुति और करन - इस बार का duet इनका. The girl and the guy - लड़की प्यार करने के इंतज़ार में और लड़का यह कहते हुए की प्यार तो मैं अपनी मर्ज़ी से हौले हौले ही करूँगा. न उस तरीके से जो तुम सोच रही हो और न ही उतनी जल्दी जिसकी तुम्हें उम्मीद है.

यह अबतक का सबसे छोटा PACH था. सिर्फ 3 .5 घंटे मगर बेइंतेहा प्यार मिला और कुछ चीज़ें मैंने महसूस की..पता नहीं और किसने की होंगी ?

अंकल आंटी के बारे में जितना लिखूँ उतना ही कम पड़ेगा...दिल से ढ़ेरों खुशियां मिली हमें.

मयंक - बंदा बहुत स्पेशल है. PACH का हिस्सा बनना चाहता है. रास्ते में पूछ रहा था की जोक्स चलेंगे क्या अगली बार ? अरे बिल्कुल चलेंगे दोस्त.. तुम्हारी वजह से शायद हम कुछ नया ही शुरू कर दें...क्यूँ अनुराग सही कहा न?
    
सुनीता- नेहा के यहाँ काम करने वाली वो लड़की जो दिल से बेहद खुश थी...बेहद, बेहद. जब वो जा रही थी तो हम सब लोगों से हाथ जोड़ कर बोली, " अच्छा नमस्ते , मुझे आप लोगों का साथ बहुत अच्छा लगा आज ". हमें भी. Genuinely दिल से खुश जिसे कहते हैं वो बात थी उसकी आवाज़ में.

Brandy - नेहा का प्यारा सा dog जो बेचारा हम लोगों के चक्कर में बाहर ही रहा और हम सब अनूप को धमकाते रहे की तुमको बाहर करके उसको अंदर ले आयेंगे.

जो मैंने सुनाया उसके बारे में तो दिली ख्वाहिश यह ही है इसको वो सुनें जिनके बारे में यह लिखा गया है ( वो फौजी और वो परिवार ) . इससे ज्यादा ख़ुशी मुझे और कही नहीं मिलेगी.


The group

PACH अब एक ब्रेक पर जा रहा है. साल के आखिर में आएगा तारो ताज़ा हो कर. तब तक हम भी इंतज़ार करेंगे वापस महफ़िल जमने का, ठहाकों का , हँसी मज़ाक का और पागलपन का... तब तक के लिए अलविदा.. 
अगले PACH तक.

4 comments:

  1. Bohot umdaa bhai.
    Beautiful recollection as always. :)

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  2. Shwetabh after reading this post of yours. you made me more eager to join PACH :)

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  3. Hum to aapse kab se keh rahe they...

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