सुबह का यह झोंका
थोड़ी ठण्ड , थोड़ी यादें ले आया है
वो यादें जो चलती इस ट्रेन की खिड़की से बाहर देखने पर पेड़ और भागती हुई पटरियों को देख कर आती हैं
जाने तुम कहाँ होगी ?
शायद सो रही होगी ...मगर मुझे तो नींद ही बरसों से नहीं आयी है
आँखें बंद करते ही तुम्हारा चेहरा सामने आता है और याद..वो तो कम्बख्त एक पल को भी साथ नहीं छोड़ती
कुल्हड़ वाली चाय की चुस्कियां लेते लेते एक अजीब सी मुस्कान चेहरे पर आ जाती है
मेरे आस पड़ोस में सब सो रहे हैं और एक मैं हूँ जो तुम्हें याद करते करते सुबह के इस ठन्डे झोंके में बस लिखे जा रहा हूँ
इस ट्रेन में हर किसी की अपनी एक मंज़िल है
मेरी कहाँ है नहीं पता
शायद मैं अपने आप से भाग रहा हूँ या तुम से ..कह नहीं सकता
चाहे कुछ भी हो, यह ठंडी हवा का झोंका आसमान में टिमटिमाते हुए तारे देखते हुए बस तुम्हारी याद ज़रूर दिला रहा है
यह ठंडी हवा का झोंका जो मुझसे बहुत कुछ कहे जा रहा है
यह ठंडी हवा का झोंका जो तुम्हारे आँचल की खुश्बू की याद दिलाता है
यह ठंडी हवा का झोंका ..
No comments:
Post a Comment