कुछ सफ़र शुरू होते हैं अनजाने में
बस यूँ ही बिना किसी मंज़िल के
दिल्ली की भाग दौड़ में कुछ लम्हें फुर्सत के
कॉफ़ी का प्याला लिए एक शादी में पहुँच जाऊँ जिसमें रंगों जैसी
खूबसूरती और भांग जैसी मस्ती
प्यार में डूब जाऊँ, कर्फ्यू में ज़िन्दगी तलाशूँ या हँस हँस के लोटपोट हो
जाऊँ ?
बस और नन्नो का सफ़र कर भगवान से सवाल भी कर जाऊँ ....
एक निर्दोष के मरने पर अपनी अंतरात्मा को जवाब दूँ या फलदार पेड़
की खूबसूरती देखूँ ?
खुद इश्क़ में राख हो जाऊँ या कुछ दोस्तों के साथ महफ़िल जमाऊँ ?
तकिये की ज़ुबानी सुनूँ या निज़ामुद्दीन की ग़ज़ल में मदहोश हो जाऊँ ?
गिटार के संगीत पर खुशियाँ ढूँढूँ ....
याद शहर की गलियों में यादें बटोरता चलूँ या गाँव में अपना बचपन जी लूँ
?
कुछ अधूरे ख़्वाबों की ख्वाहिश रखूँ दिल में या किसी के आने का इंतज़ार
करूँ ?
हर दिन के सन्डे होने की तमन्ना करूँ या एक घर में मेहमान नवाज़ी की
ख्वाहिश ?
बड़ों के बीच बच्चा बन जाऊँ या तल लूँ थोड़े प्यार के पकोड़े दोस्ती के
मौसम में ?
एक अजन्मी बच्ची की दिल की सुनूँ या किसी की राह न तकूँ ?
सड़क पर यादों के सहारे बस चल पड़ने का मन सा है....
भतीजी को गुब्बारे दिलाऊँ या मलयालम की खिड़की खोलूँ एक ठंडी हवा के लिए ?
मौत को समझूँ या जी लूँ Life before 5.30 ?
अपने प्यार को भुला दूँ यह कह कर कि यह कोई ख़ास नहीं या उन यादों को जाने ही न दूँ ?
काश कह कर पुराना वक़्त वापस लाऊँ या शराब के एक जाम में ही बहक जाऊँ ?
अपने प्यार के नाम पर एक ख़त लिखूँ या अपनी आवारगी तलाशूँ ?
एक छोटे रुमाल की दास्ताँ लिखूँ या बचपन की कॉमिक्स के सहारे फिर मचल जाऊँ ?
इस सफ़र में तीसरा प्यार करूँ या दुनिया के शोर पर ध्यान दूँ ?
लड़कियों का मेकअप देखूँ या कुछ गुमशुदा अरमानों की बारिश में भीग जाऊँ ?
माँ के आँचल में सर छुपा लूँ या ख्यालों की खिचड़ी के चटकारे लूँ ?
आँखों के काजल पर दिल दे बैठूं या कान्हा के प्रेम में राधा को सोचूँ ?
आपकी क्यूँ करें कह कर थोड़ी बगावत भी कर दूँ ..
एक दुल्हन की घबराहट महसूस करूँ या फिर खीर पर ही टूट पड़ूँ ?
फौजियों के हालात समझूँ या मचलती उँगलियों के साथ थोड़ी शरारत करूँ ?
कुछ कदम पीछे रख कर पुराने ज़माने में ही चला जाऊँ ....
धूप के मज़े लूँ या खुद इतिहास का हिस्सा बन जाऊँ ?
दिल खोल कर हँसू या बस एकदम से रो पड़ूँ ?
इस शहर का इतिहास सुन लूँ या थोड़ा प्रोफेसर की क्लास अटेंड कर लूँ ?
अरब के साथ थोड़ी माथापच्ची करूँ या इस ठण्ड में थोड़ा पानी अपने ऊपर उड़ेल लूँ ... बरररर ...
सब्ज़ी मंडी में डॉक्टर के पास जाऊँ या किसी जन्नत की परी के लिए चलती ट्रेन में चढ़ जाऊँ ?
प्यार की इमारत में बैठ कर उस पीले कागज़ की चिट्टी पढ़ूँ या उस अनजानी लड़की को ढ़ांढ़स बंधाऊँ ?
गाना गाऊँ या नाच कर महफ़िल जमाऊँ ?
CCD में प्याला थामे कॉफ़ी पियूँ या हौज़ ख़ास में फ़ोटो में दुनिया घूमूँ ?
एक घर में खाने के जी भर के मज़े लूँ या दूसरे में माँ के हाथ की खीर बस चट कर जाऊँ ?
एक कवि के साथ बैठ कर गुफ्तगू करूँ या मकबरों में अतीत ढूँढूँ ?
इसे अनजाने वाला सफ़र कहूँ या कुछ अन्जानों का साथ जुड़ना
इसे ज़िन्दगी का मुकाम कहूँ या ज़िन्दगी का एक सफ़र
इसे क्या कहूँ ? कोई बतलायेगा मुझे ?
PACH का सफरनामा कुछ मेरी नज़रों से
Reviewed by Shwetabh
on
2:14:00 PM
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