काजल तेरी आँखों का
आँखों की मासूमियत झलकाता यह काजल
बिना कुछ कहे ही बहुत कुछ कह जाता तेरा काजल
तेरी लहराती ज़ुल्फ़ों के साथ ऐसा जैसे रात की ख़ामोशी और चंदा की रौशनी
पूरी दुनिया अपने में समेट लेता तेरा काजल
आँखों का आईना यह काजल
उदास होने पर बिखरता हुआ
ख़ुशी में चमकता हुआ
डर में सहमी सी आँखों को अपने में समेटे हुए
सिर्फ काली लकीर नहीं, रात का अक्स दिखता है इसमें
वो रात जिसमे दिल चाहे बस तेरा साथ
एक दूसरे का हाथ पकड़े हुए ख़ामोशी से चाँद को देखना और कहना " काश यह लम्हा यूँ ही थम जाए तेरे साथ "
हर रोज़ तुम लगाती तो इसे यूँ ही हो
मगर पता है तुम्हें की इसका असर कितना गहरा है मुझ पर ?
तुम्हारी मुस्कराहट के साथ ऐसे खिलता है जैसे छोटी बच्ची के चेहरे पर कोई अनजानी चमक
तुम्हारी आँखों का श्रृंगार है यह , पता है न ?
इसको देख कर दिल धड़क जाता है , मालूम है न ?
इसके बगैर तुम्हारी सूनी ऑंखें अच्छी नहीं लगती
पता नहीं क्यूँ मगर मुझे अपनी परी , इन पंखों के बगैर परी नहीं लगती
गुलाब की पंखुड़ी पर सुबह की ओस की तरह है
इन काजल वाली आँखों के साथ तुमको बस देखते जाने का मज़ा ही कुछ और है
लोग तो शराब पी कर बेहक जाते हैं
और हमें तो तेरी आँखों का सुरमा ही होश में नहीं आने देता
इन ज़ुल्फ़ों के साथ तुम्हारे काजल का अजीब रिश्ता है
मेरा दिल छलनी करने के लिए तुम्हारे पास नज़रों के साथ इसका भी ज़खीरा है
इस अनजाने शहर में पल पल बहुत याद आती हो तुम
पूछती हो न की कब तक प्यार करता रहूँगा तुम्हें ?
जब तक यूँ ही मुस्कुराती रहोगी तुम तब तक यह दीवाना हर दिन बस ऐसे ही चाहता जायेगा तुम्हें ...
The lines i still love today.. काजल #poem
Reviewed by Shwetabh
on
10:35:00 AM
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Wow..
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Beautifully penned Shwetabh Mathur, aaj kal kahan old school romantic panktiyan padhne milti hai, am sure she would be blushing reading your poem :)
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