This poem tries to capture the love of every couple who have been married for years now and also the feelings when they grow old. Experience as both the husband and wife speak out their love, emotions implying that they both understand the mischiefs of each other .. Its basking in the warmth of the winter sun with the one you truly love ... at any time of the day or night because आज ठण्ड कुछ ज्यादा है और धूप अच्छी है.
आज ठण्ड कुछ ज्यादा है और धूप अच्छी है
इस ठण्ड में तुम्हारा हाथ थामे बैठा रहना अच्छा लगता है
वो हाथ जिन्हें बरसों पहले एक रात थाम कर एक नयी ज़िन्दगी शुरू की थी
न जाने क्यूँ बस तुम्हें यूँ ही बाहों में भर लेने का मन है ... बस यूँ ही
कभी कभी ऐसा करने की कोई वजह मालूम नहीं पड़ती , बस दिल करता है
वो तुम्हारा आज भी झूठमूठ नाराज़ हो झगड़ पड़ना मुझसे, मगर दिल ही दिल मेरे मनाने का इंतज़ार करना – अच्छा लगता है
वो आज भी रात में तुम्हारा मेरी बाहों का तकिया बनाकर सो जाना – अच्छा लगता है
वो तुम्हारी आँखों में आज भी अपने लिए अनकहे प्यार को ढूंढना – अच्छा लगता है
वो तुम्हारा आज भी मुझे सुबह जगाने से पहले जी भर कर देखना – अच्छा लगता है
वो तुम्हारा आज भी अपने गीले बालों को मेरे चेहरे पर छू कर जगाना – अच्छा लगता है
वो तुम्हारा रोज़ रोज़ शर्ट के बटन टांकने के बहाने बाहों में आ जाना – अच्छा लगता है, और रोज़ इस बहाने को महसूस करने के लिए मेरा चुपके से खुद ही बटन तोड़ देना मुझे अच्छा लगता है
वो तुम्हारी कुछ नासाज़ तबियत में भी “ मैं ठीक हूँ” कह कर काम करते हुए, अन्दर बसे प्यार को तलाशना – अच्छा लगता है
आज ठण्ड कुछ ज्यादा है और धूप अच्छी है
वो आज भी गुलाब मिलने पर तुम्हारा मुस्कुरा कर “ हटो जी, बूढ़े हो रहे हो तुम और अभी भी मोहब्बत सूझ रही है?” कहना - अच्छा लगता है
वो चल न पाने पे तुम्हें बाहों में उठा लेना – मुझे अच्छा लगता है
जिसने पूरा घर अपने कन्धों पे उठा रखा है , उसे पल दो पल का आराम देना – मुझे अच्छा लगता है
तुम्हारे साथ पूरी ज़िन्दगी काट लेने का एहसास बयान नहीं होता
उम्र के इस पड़ाव पे आकर पीछे मुड़कर गुज़रे सालों को देखना .... एक अनकहा एहसास है
वो आज भी ठण्ड में निकली धूप की गर्माहट में तुम्हें बैठे देखना – अच्छा लगता है
इस बुढ़ापे में भी डरती आँखों से तुम्हारा सवाल , “ तुम आज भी मुझसे प्यार करते हो न ? – अच्छा लगता है
अच्छा लगता है तुम्हारा प्यार , तुम्हारे डर, सब अज़ीज़ लगते हैं मेरे को
आज ठण्ड कुछ ज्यादा है और धूप अच्छी है
यूँ ही तुम्हारा मुझे बाहों में लेना अच्छा लगता है .
हर चीज़ की वजह हो ही , यह ज़रूरी तो नहीं
वो तुम्हारे मनाने तक मुझे झूठमूठ गुस्से का दिखावा करना – मुझे अच्छा लगता है
रात में तुम्हारी बाहों में सोकर , तुम्हारी धड़कन सुनना - मुझे अच्छा लगता है
मेरे अनकहे प्यार को तुम्हें मेरी आँखों में ढूंढते देखना मुझे अच्छा लगता है
गीले बालों से छेड़ कर तुम्हें सुबह जगाना – मुझे अच्छा लगता है
चुपके से तुम्हें खुद ही रोज़ शर्ट के बटन तोड़ते देख कर अपनी हंसी मुश्किल से रोक पाना मुझे अच्छा लगता है
मेरी नासाज़ तबियत में तुम्हारा बेचैन हो जाना अच्छा नहीं लगता मगर उसके पीछे छुपे प्यार को देखना अच्छा लगता है
आज ठण्ड कुछ ज्यादा है और धूप अच्छी है
अब भी गुलाब दे कर अपने प्यार का इज़हार करने का तुम्हारा अंदाज़ मुझे आज भी अच्छा लगता है
मेरी फटी एड़ियों के दर्द के आगे मुझे तुम्हारी अपनी बाहों का मल्हम देना , मुझे अच्छा लगता है
तुम्हारे साथ पूरी ज़िन्दगी काट लेने का एहसास मेरे लिए किसी जन्नत से कम नहीं
बुढ़ापे में मेरी डरती आँखों के सवाल किसी भी आम औरत की ही तरह सवाल करते हैं तुमसे
अच्छा लगता है आज भी तुम्हारा बेंतेहा प्यार देख कर
आज ठण्ड कुछ ज्यादा है और धूप अच्छी है
ज़िन्दगी के हर पड़ाव पर ....... तुम्हारे साथ
आज ठण्ड कुछ ज्यादा है और धूप अच्छी है.
Reviewed by Shwetabh
on
6:12:00 PM
Rating:
Enjoyed reading this
ReplyDeleteJe baat pilot
ReplyDeleteTouching! I liked that you have written from both sides :)
ReplyDelete:)
DeleteNice post Shwetabh. Had never read your poems before. Glad got the chance today :)
ReplyDeletethanks bro :)
DeleteIt is the perfect fit for my married life! Bahot khub Shwetabh!!!
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