वाकया छोटा सा है मगर मुझे अभी अभी यह समझ नहीं आ रहा है कि मैंने गलत किया या सही ? ट्रेन से लखनऊ वापस आ रहा था कानपुर से . जिन्हें नहीं पता – कोई 75 किमी की दूरी है. जनरल डब्बे में सफ़र कर रहा था, ट्रेन एक्सप्रेस थी. 90 मिनट में लखनऊ खड़ा कर देती. डब्बे में एक मूंगफली और मसाला बेचने वाला आया. वो देख नहीं सकता था . खैर प्लेटफार्म आने लगा तो मैं दरवाज़े की तरफ बढ़ा और देखा वो सारा सामान अपने झोले में रख कर दरवाज़े के पास खड़ा था और आगे खड़े लोगों से कह रहा था , “ भैया मुझे पुल पर चढ़ा देना “. ट्रेन प्लेटफार्म न. 3 पर आती है और बाहर जाने के लिए पुल चढ़ना पड़ता है. मैं उसके ठीक पीछे था. उस दिन ट्रेन में बहुत कम भीड़ थी इसलिए चढ़ने वालों का चलती ट्रेन में चढ़ कर सीट हथियाने का खतरा ज्यादा था.
उसके आगे खड़े लोगों ने तो हाँ हाँ कर दी तब मगर जब ट्रेन रुकी तो सबसे पहले वो ही भाग लिए. भीड़ को चढ़ने से रोकने के लिए मैंने
चिल्लाना शुरू किया की , “ रुक जाओ बे, देख नहीं सकता ये, उतर जाने दे पहले उसके बाद अन्दर कूद लियो ”. अब वो जिनके सहारे बैठा था वो तो फूट लिए , मैं तो अकेला छोड़ नहीं सकता था तो उसका हाथ पकड़ कर मैं उसे बाहर तक ले आया. उसने बताया कि उसे आलमबाग जाना था जो की रेलवे स्टेशन से भी थोड़ी दूर तो था ही और आपको मैं रोड तक आने के लिए भी कम से कम 300 मीटर तो चलना ही है. टेम्पो उसको वहीँ से मिलता, स्टेशन पर तो प्रीपेड ऑटो ही खड़े रहते हैं. ट्रैफिक के डर से मैं उसे सड़क पार ले आया और जब मैंने उससे कहा की “ सड़क तक की रिक्शा कर ले “ तो वो कहने लगा की रिक्शा वाले बहुत पैसे माँगते हैं. सही बात है, एक गरीब कितना कमा ही पाता होता ? वो तो वैसे भी बगैर छड़ी के था. मुझसे कहने लगा की आप मुझे बस रास्ता बता दो, वो चला जाएगा..
मेरे इर्द गिर्द काफी रिक्शा वाले थे उस वक़्त. अब मैं यही सोच रहा हूँ कि क्या मुझे अपनी जेब से किराया दे कर उसको एक रिक्शा करवा देनी चाहिए थी ? स्टेशन की भीड़, आने जाने वाले वाहनों की आवाजाही में बिना छड़ी के , अपना झोला संभाले क्या वो ठीक होगा ? वो रिक्शा वाला हिसाब सोच सोच कर ही दिमाग खराब है ... जो किया क्या ठीक किया ??
आपको क्या लगता है ??
दिल की कलम से.. सही किया या गलत ??
Reviewed by Shwetabh
on
11:29:00 PM
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apne dil ko taslli mil gayi na ki jo kiya theek kiya bas.
ReplyDeleteKai baar aisa hota hai ki hame lagta hai ki hum dusro ki madat aur bhi ache se kar sakte the but kar nahi paye...
ReplyDeleteYeh blog padhke acha laga. Aur jo kia bhut acha kia.. agli baar rickshaw bhi karwa dena.