कुछ अधूरा है तुम्हारे बगैर
एक कमी है जो बयान नहीं होती
कुछ खलता है जो पता नहीं क्या है?
शायद तुम्हारी आदत पड़ती जा रही है मुझे
उस एहसास को जब लिखना चाहता हूँ तो न जाने क्यूँ अल्फ़ाज़ दूर दूर से
रहते हैं
तुम पास नहीं हो तो लगता है जैसे किसी ने घर से जान ही निकाल ली
अब सुबह कोई मेरी नींद खराब नहीं करता
अब चीखता चिल्लाता अलार्म कुछ देर बाद खुद ही खामोश हो जाता है
देर से उठने पर कोई ताना नहीं देता, "तुम आज छुट्टी पे हो न? मुझे भी
shopping बैग्स उठाने के लिए कोई चाहिए "
अब तुम्हारी खिलखिलाती वही हँसी मेरे साथ नहीं होती
अब खाने की मेज़ यूँ अपने पास नहीं बुलाती
सब कुछ बेस्वाद सा लगता है
अब कोई ज़बरदस्ती थाली में और खाना नहीं परोसता, बीमार होने पर
बिस्तर पर अपने हाथों से कोई नहीं खिलाता
ये क्या कर गयी हो तुम कि आदत पड़ गयी है तुम्हारी ?
ऐसी आदत जो अब छूटा नहीं करती
ज़िन्दगी की तस्वीर की पहेली का वो टुकड़ा हो जो साथ रहता है तो तस्वीर
पूरा करता है, हट जाए तो पहेली पूरी नहीं होती
अब शाम की चाय में वो बात नहीं है, अब शाम शाम नहीं है
अब घर जाने की जल्दी नहीं होती, किसी की इंतज़ार करती निगाहें नहीं
होती
तुम नहीं हो तो वक़्त का भी अब इंतज़ार नहीं
अब तो बगीचे के गुलाब भी मुरझा से गये हैं कि मेरी ज़िंदगी का गुलाब
पास जो नहीं
नींद तो कोसो दूर है कि वो डरा देने वाले सपनों में आधी रात को हौले से
थाम लेने वाली तुम पास नहीं
आँखें बंद करूँ तो तुम हो, आँखें खोलूं तो ओझल
बहुत कुछ रहता है कहने को, बहुत कुछ रहता है सुनने को
तुम होती सामने तो बात कुछ और होती
दिन भर रहता है तुम्हारा ख्याल, क्या तुम भी मुझे याद करती हो ?
रात के सन्नाटे में यादों से लड़ता हूँ थोड़ा बहुत
तुम मिलो तो शायद बिना कुछ कहे ही बाहों में भर लूँ तुमको
कहा था न , एक कमी है जो बयान नहीं होती
तुम्हारे बगैर ज़िन्दगी बयान नहीं होती....
The thoughts of a husband while his wife is away from him. He misses her, her presence all the while...
तुम्हारे बगैर ज़िन्दगी बयान नहीं होती...
Reviewed by Shwetabh
on
10:48:00 PM
Rating:
No comments: