Representative image |
कुछ समझ नहीं आया-
तकरीबन कोई 3 km की दूरी होगी कानपुर में टाटमिल चौराहा और बिरहाना रोड में. ऑफिस में 1 घंटा बाकी था तो सुबह पैदल ही चल दिए टाटमिल चौराहे से बिरहाना रोड. कुछ दूर चलते ही एक flyover पड़ता है जिसकी चढ़ाई आधे पुल तक ज़रा ज़्यादा है.
यूँ ही कुछ सोचता हुआ जा रहा था तो देखा कि एक औरत वो तीन पहिये वाली साइकिल चला रही थी जो विकलांगो को मिलती है और उस चढ़ाई पे उस साइकिल को पीछे से धक्का लगा रही थी एक तकरीबन कोई 3.5-4 साल की बच्ची. अब गरीब के पास जूते कहाँ साहब? नंगे पैर वो बच्ची जो पुल की चढ़ाई पे अपने से ज़्यादा भारी साइकिल को धक्का लगाती वो और बेइंतेहा कोशिश करती उसकी माँ कि चढ़ाई पूरी हो जाए.
न जाने बच्ची को देखकर क्या हुआ कि मैंने पूछ ही लिया उस औरत से, "मदद चाहिए ? धक्का लगा दूं? ". शायद इस बात के लिए वो तैयार नहीं थी इसलिए उसने चेहरा मेरी तरफ घुमाया और देखने लगी. तब मैंने देखा कि वो एक आँख से देख भी नहीं सकती थी. उसने मना नहीं किया तो मैंने झट से पीछे से साइकिल पकड़ी और उस बच्ची को बैठने को बोला. वो फटाफट पीछे से कूद कर आगे आधी बैठी, आधी खड़ी स्थिति में हैरानी से मुझे देखती रही और मैंने धक्का लगाना शुरू किया. पीछे से भागती आती गाड़ियों से बेखबर मैं बस एक अनजान औरत की गाड़ी को धक्का लगाए जा रहा था..
कोई मुश्किल नहीं हुई और आराम से मैंने उनको पुल के उस हिस्से पे पहुँचाया जहां से ढलान शुरू होती है. उस औरत ने मुझे हाथ से बस करने का इशारा किया और चल दी. बच्ची मुझे तब तक देखती रही जब तक नज़रों से ओझल न हुई. और मज़े की बात कि आज के वक़्त में कोई किसी के लिए रुकता नहीं वहाँ पूरे रस्ते मुझे 4 अलग अलग लोगों ने लिफ्ट लेने के लिए कहा मगर हमको तो वक़्त काटना था तो चलते ही रहे..
जो मैंने किया वो मुझे खुद भी नहीं पता कि क्यों किया मगर शायद सड़क पे नंगे पैर एक नन्ही सी बच्ची को अपनी माँ की गाड़ी को धक्का लगाते देख बिल्कुल अच्छा नहीं लगा.
बस समझ नहीं आया कि वो बच्ची मुझे इतना हैरानी से क्यों देख रही थी?
दिल की कलम से : कुछ समझ नहीं आया
Reviewed by Shwetabh
on
8:59:00 AM
Rating:
No comments: