वक़्त थमते देखा है कभी?
इस भाग दौड़ वाली दनिया में शान्ति फिर कैसी होती है, महसूस किया है क्या कभी?
कभी उस रेलवे की बंद क्रासिंग पे रुको तो महसूस कर लेना ये सब...
रोज़मर्रा की ज़िन्दगी की भाग दौड़ का ठहराव है यह सब...
एक अनजानी दौड़ का अल्पविराम, कुछ देर सुस्ताने का इशारा...
वो रेलवे की बंद क्रासिंग जो कुछ देर के लिए ही सही मगर उस शोर से निजाद दिलाती है जिसे आम ज़िन्दगी का हिस्सा मान चके हो
गाड़ियों के रेस लगाते पहिये, ट्रैफिक लाइट पे बेतहाशा चिल्लाने वाले हॉर्न... सब खुद ही शांत हो जाते हैं उस बंद रेलवे क्रासिंग के फाटक के उस पार |
उस सन्नाटे में सुन सकते हो तुम वक़्त की खामोशी, चिड़ियों की चहचाहट... सब कुछ...
बिलकुल वैसे ही जैसे हमेशा से ही चाहत थी
वो गाड़ी की थकान मिटाने को चाय की थड़ी सड़क के किनारे उबलते पानी में चाय पत्ती की महक बिखेर रही है...
वो एक चाय की तलब को “कमर सीधा” करने के बहाने का नाम अच्छा है
उसी के साथ वो अखबार , किताबें, मैगजीन, ले लो की बार बार दोहराती आवाजें
सफर के मज़े लेते बच्चो की आवाज़ें , जो लूडो और सांप सीढ़ी के खेल में व्यस्त है ...
और फिर कहीं सुरीली बेसुरीली आवाज़ों में अंताक्षरी के बहाने से गानों को नया रोमांच देते कुछ पल ..
इन आवाज़ों के बीच जैसे कुछ खोये हुए बचपन की यादें यूँ ही आँखों के सामने आ जाती हैं ...
वो रेलवे फाटक के खुलने के इंतज़ार में , कुछ पल के लिए बचपन की राहत और सुकून भरी बातें यूं ही छेड़ जाती है ...
उस गुजरने वाली ट्रेन के इंतज़ार में, ठेले पे पत्ते में नमक, मिर्च , नीबू में डूबे खीरा ककड़ी इशारों से चिढ़ा चिढ़ा कर खूब बुलाते हैं...
अब चटोरी जुबां कदमों को रोकती है या कदम ज़ुबा को, यह तो अल्लाह ही जाने...
मगर हरियाली वो ललचाती बहुत है
बारिश की बूंदों से भीगी सड़क पे वो कोयले की अंगीठी भुट्टा भूनते हुए पास बुलाती है...
कहीं कोने में कोई झाबे वाला चनों के साथ टमाटर, प्याज, मसालों से एक अलग ही संसार बना रहा है
उस बंद क्रासिंग के उस पार एक अलग ही दुनिया है...
जहाँ सड़क किनारे की दुकानें रफ़्तार पकड़ती हैं, गाड़ियों की रफ़्तार थम जाने के बाद...
अब वो बंद रेलवे क्रासिंग भी गुज़रे ज़माने की बात हैं ..
अब flyovers के ऊपर से दुनिया निकल जाती है, वो गुज़रती ट्रेन देखने का वक़्त किसके पास है?
वक़्त अब सब पे भारी है, जिसकी पहुँच में है वो हवाई जहाज़ को तवज्जो दे रहा है |
वो शौक बचा है बस अब बच्चों की, “पापा देखो ट्रेन” वाली आवाज़ में...
जो मजबूरी में खड़े हैं, आने वाली रेल की रफ़्तार उनकी बार बार घड़ी पे समय देखती बेचैनी से काफी कम है...
जलन है उनसे जो सफ़र कर रहे हैं...
जो डब्बे के अन्दर है वो न जाने मंजिल की तरफ जा रहे है या आ रहे है
ट्रेन, उसकी सीटी, वो छुक छुक , वो पटरियों की घरघराहट अब तो बस किस्से कहानियों की ही बातें हैं...
वो रेलवे की बंद क्रासिंग....
The story behind this-
Collaborating with Ila again after 7 years. Our last post together was Siachen in 2015.
Siachen can be found here -
वो रेलवे की बंद क्रासिंग....
Reviewed by Shwetabh
on
11:51:00 AM
Rating:
Nice
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