आज मेरी स्कूटर आखिरी बार यहाँ तक आएगी रोज़ रोज़ के आने में
वो आलमबाग से लालबाग का सफ़र अब बस यूँ ही हुआ करेगा
अब जल्दी नहीं होगी उठने की , ज़रा थकान तो मिटाने दो भाई
लेकिन ये नहीं पता कि क्या बदलाव पसंद आएगा
घर की “ चाय पी लो , तैयार है” एक तरफ और “ सर चाय लेंगे या मठ्ठा ? ” हर बार
वो नमकीन के छोटे पैकेट , घर के आलू पराठों से ज़्यादा पेट भर गए
वो श्रीमती जी के हाथ का बना सलाद और अचार हम तो बस चमच्च भर ही ले पाए, बाकी सब once more once more कह, चटकारे ले ले कर चट कर गए
वो पत्ते पे खस्ता मटर का स्वाद तो बढ़िया से बढ़िया होटल भी न दे पाए
“अरे सुनिए ज़रा” तो रोज़ मर्रा की बात हो जाएगी मगर एक लड़की का “ अरे सर ज़रा यह बताइए“ सुनना , बहुत याद आएगा
बिना पढ़े अखबारों के पन्ने से शायद आवाज़ आएगी , “ सर ज़रा इतनी फाइलों को पीट दीजिये”
और वो जो बगल में बायें बैठता था न सिरफिरा, न जाने क्या कहूँ उसके बारे में ?
खामखा की टेंशन लेता है मगर कब कौनसी खुराफात कर दे ये तो मुझे भी नहीं एहसास
“ज़रा वो फाइल ढूंढना” धीरे धीरे घर की कुछ और चीजों को ढूँढने में तब्दील हो जायेंगी
सुबह का वो नमस्कार अब कॉलोनी में बाकियों के साथ होगा
लैंडलाइन की वो तेज़ घंटी अब बानी की खिलखिलाती हँसी में तब्दील हो जाएगी
शर्मा की चाय अब अड्डा बन जायेगा, जब भी गुजरेंगे यहाँ से तो तलब बनी रहेगी
दादा के लाये छोटे समोसे तो बस बेवजह ही याद आयेंगे
अगर बोल सकता तो मेरा हर एहसास एक किताब होता
अजी यादों के सफ़र का एक सफरनामा है यह
अभी तो रस्ते में बस ठहराव आया है
एक परिवार का 37 साल का साथ पूरा हुआ और एक के साथ उनके खोये हुए वक़्त की भरपाई अभी बाकी है
आज मेरी स्कूटर आखिरी बार यहाँ तक आई है
सफरनामा
Reviewed by Shwetabh
on
7:50:00 PM
Rating:
No comments: